द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों को अपनी पाठशाला में विद्यालाभ दिया. समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र, विज्ञान, साहित्य इत्यादि के साथ-साथ उन्हें शस्त्र-विद्या में पारंगत किया. जब राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा संपन्न हुई तब गुरुवर द्रोण ने गुरुदक्षिणा में राजकुमारों के समक्ष अपनी माँग रखी. माँग थी; पाँचाल नरेश द्रुपद को पराजित कर उन्हें बंदी बना गुरु द्रोण के समक्ष प्रस्तुत करने की.
युद्धकला में निपुण कौरव और पांडव युद्ध के लिए प्रस्तुत हुए. पहले दुर्योधन ने द्रुपद बंदी बनाकर द्रोण के समक्ष लाने का प्रस्ताव रखा. दुर्योधन और दुशासन ने सेना लेकर द्रुपद पर आक्रमण किया परंतु युद्ध-कला में निपुण और ‘विराट सेना के स्वामी’ राजा द्रुपद ने दुर्योधन और उसकी सेना को पराजित कर दिया. पराजित दुर्योधन लज्जा के मारे अपने गुरु समक्ष उपस्थित होने लायक भी न था.
अब बारी थी अर्जुन की. उन्होंने भीम को साथ लेकर द्रुपद पर आक्रमण किया और उन्हें और उनकी पूरी सेना को पराजित कर महाराज द्रुपद को बंदी बना लिया. वीर अर्जुन ने द्रुपद को गुरु द्रोण के समक्ष प्रस्तुत किया. गुरु को अपने सबसे महान शिष्य पर गर्व हुआ. वे मन ही मन सोच रहे थे कि अर्जुन को संसार का सबसे बड़ा धनुर्धर बनाना व्यर्थ नहीं गया.
बंदी द्रुपद अपने बाल-सखा द्रोण के समक्ष लज्जित थे. उनका घमंड चूर-चूर हो चुका था. दृश्य देखकर देवताओं ने आकाश से पुष्पवर्षा के अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अर्जुन पर भीषण पुष्पवर्षा की. कुछ देवताओं ने अत्यधिक पुष्प बरसाये क्योंकि अर्जुन देवराज इंद्र के पुत्र थे और ये देवता देवराज की गुड बुक में घुस जाने का अवसर खोना नहीं चाहते थे.
गुरु द्रोण ने महाराज द्रुपद का आधा राज्य लेकर अपने पुत्र अश्वत्थामा को उसका राजा बना दिया.
अपने अपमान से लज्जित और बदले की भावना लिए द्रुपद ने यज्ञ किया. अग्निकुंड से द्रौपदी की उत्पत्ति हुई. द्रौपदी जब विवाह योग्य हुई तो महाराज द्रुपद ने उसका स्वयंवर रखा. देश-विदेश के राजा और राजकुमार द्रौपदी से विवाह करने की इच्छा से लैस तैयार होने लगे.
हस्तिनापुर से दुर्योधन, कर्ण इत्यादि भी तैयार हुए. द्रौपदी के स्वयंवर में जाने की अपनी इच्छा को पूरे हस्तिनापुर को बताने के किए युवराज दुर्योधन ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स रखी. जब पत्रकार आ गए तो दुर्योधन ने उन्हें संबोधित करना शुरू किया; “जैसा कि आपसब को विदित है, पाँचाल नरेश द्रुपद ने अपनी पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया है. हस्तिनापुर से मैं और अनुज दुशासन और अंगराज कर्ण ने वहाँ जाकर द्रौपदी से विवाह करने का निर्णय लिया है. आपसब को आगे विदित हो कि…
पत्रकार चिंतामणि गोस्वामी ने युवराज को टोकते हुए प्रश्न किया; “युवराज आपको यदि स्मरण हो तो आप एकबार महाराज द्रुपद से पराजित हो चुके हैं. ऐसे में उनकी पुत्री के स्वयंवर में शामिल होना क्या आपको शोभा देता है?”
युवराज दुर्योधन चुप थे तभी उपयुवराज दुशासन बोल पड़े; “आपकी जानकारी सही नहीं है. हम महाराज द्रुपद से हरबार पराजित नहीं हुए हैं. हमने उन्हें पराजित भी किया है”
यह हस्तिनापुर की मीडिया के लिए नवीन सूचना थी. सारे पत्रकार एक-दूसरे से खुसर-फुसर करने लगे. तभी युवराज दुर्योधन ने माइक संभाला और बोले; “हम नहीं चाहते थे कि यह क्षण आए परंतु नियति चाहती है कि आज हम आपके समक्ष सत्य कह दें और सत्य यह है कि हमने वर्षों पूर्व गुरिल्ला ऑपरेशन में महाराज द्रुपद को दो बार बंदी बनाया था. एकबार मौनी अमावश्या की रात्रि और एकबार नागपंचमी की रात में परंतु दोनों बार गुरु द्रोण ने यह कहकर उन्हें जाने दिया था कि जबतक हम द्रुपद को युद्धक्षेत्र में बंदी नहीं बनायेंगे तब तक गुरु द्रोण उन्हें बंदी न मानेंगे”
दूसरे दिन हस्तिनापुर में हड़कंप मच गया. एक सप्ताह पश्चात किसी पत्रकार ने गुरु द्रोण के कार्यालय में RTI करके जानकारी निकाली तो गुरु द्रोण के अपर लिपिक ने लिखित उत्तर देते हुए युवराज दुर्योधन के दावे को असत्य बताया.
RTI का उत्तर जब हस्तिनापुर एक्सप्रेस में छपा तो युवराज ने कहा; “ये अर्जुन हमेशा गुरु द्रोण का चहेता था इसलिए वे उसका पक्ष लेते हैं”
6 Comments
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